Category Spiritual

  • प्रश्नोत्तरमणिमाला

    सात्त्विक सुख, शान्ति और आनन्दमें क्या फर्क है?
    सांसारिक सुख और पारमार्थिक आनन्दमें क्या अन्तर है?
    कर्तव्यका पालन कठिन क्यों दीखता है?

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  • जय दुर्गे दुर्गति परिहारिणि

    माँ दुर्गा की पूजा बड़े व्यापक रूप से भारत और भारतेतर भारतवासियों के द्वारा बड़ी श्रद्धा-भक्ति से मनाई जाती है। सर्वदुखहारिणी, सर्वसुखकारिणी, दयारूपिणी, वात्सल्यप्रर्विषणी माँ दुर्गा संसार की सभी चराचर प्राणियों की माता हैं।

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  • चुप-साधन

    चुप-साधन समाधिसे श्रेष्ठ है; क्योंकि इससे समाधिकी अपेक्षा शीघ्र तत्त्वप्राप्ति होती है। चुप-साधन स्वतः है, कृतिसाध्य नहीं है, पर समाधि कृतिसाध्य है। चुप होनेमें सब एक हो जाते हैं, पर समाधिमें सब एक नहीं होते। समाधिमें समय पाकर स्वतः व्युत्थान होता है, पर चुप-साधनमें व्युत्थान नहीं होता। चुप-साधनमें वृत्तिसे सम्बन्ध विच्छेद है, पर समाधिमें वृत्तिकी सहायता है।

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  • काम-क्रोधादि स्वभाव नहीं, विकार हैं

    काम-क्रोधादि विकार तभी तक तुमपर अधिकार जमाये हुए हैं, जबतक इन्हें बलवान् मानकर तुमने निर्बलतापूर्वक इनकी अधीनता स्वीकार कर रखी है।

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  • भगवती शताक्षी शाकम्भरी

    भगवती शताक्षीने प्रसन्न होकर ब्राह्मणों एवं देवताओंको अपने हाथोंसे दिव्य फल एवं शाक खानेके लिये दिये तथा भाँति-भाँतिके अन्न भी उपस्थित कर दिये। पशुओंके खानेयोग्य कोमल एवं अनेक रसोंसे सम्पन्न नवीन तृण भी उन्हें देनेकी कृपा की और कहा कि मेरा एक नाम ‘शाकम्भरी’ भी पृथ्वीपर प्रसिद्ध होगा।

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  • जय दुर्गे दुर्गतिनाशिनि जय

    स्नेहमयी सौम्या मैया जय। जय जननी जय जयति जयति जय॥

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  • How did Ganesha Ji get an elephant head?

    You may notice that one of Vinayaka’s tusks is broken. There is a legend about this too. Demon Taraka obtained boon from Brahma that he should not be killed with anything that had life or that hadn’t. With this power the wily Demon began to torment the three worlds until he was killed by Vinayaka.

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  • शिकागो के ऐतिहासिक व्याख्यान की १२५वीं वर्षगाँठ

    जो कोई मेरी ओर आता है, चाहे वह किसी प्रकार से हो, मैं उसे प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न-भिन्न मार्ग से प्रयत्न करते हुये अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।

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  • श्री गणेश जी की आरती

    मैं उन भगवान गजानन गणेशजी को प्रणाम करता हूँ, जो लोगों के सम्पूर्ण विघ्नोंका हरण करते हैं। जो सबके लिए धर्म, अर्थ और कामकी उपलब्धि कराते हैं, उन विघ्नविनाशक को नमस्कार है।

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  • तत्त्वविवेचनी

    पहले किसी दूसरे उद्देश्य से किए हुए कर्मोंको पीछे से भगवानके अर्पण कर देना, कर्म करते करते बेचमें ही भगवानके अर्पण कर देना – यह भी “भगवदर्पण” का ही प्रकार है, यह भगवदर्पणकी प्रारम्भिक सीढ़ी है।

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