अटल बिहारी वाजपेयी भारत के दसवें प्रधानमंत्री थे। वे भारतीय जनसंघ पार्टी के संस्थापकों में से एक थे, और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने लम्बे समय तक पाञ्चजन्य पत्रिका का सम्पादन भी किया। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक भी रहे। वह ऐसे पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे जिन्होंने 5 वर्ष सफलतापूर्वक पूर्ण किये। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी। 2005 से वह राजनीती से सन्यास ले चुके थे, और लम्बी बीमारी के बाद 16 अगस्त 2018 को उनका स्वर्गवास हो गया।
आरम्भिक जीवन एवं पत्रकारिता
अटल जी के पिताजी का नाम पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी था जो बटवेश्वर, उत्तर प्रदेश के मूल निवासी थे। वह ग्वालियर, मध्य प्रदेश में अध्यापक की तरह कार्यरत थे। 25 दिसम्बर 1925 के दिन माता कृष्णा वाजपेयी ने अटल जी को जन्म दिया। श्री कृष्ण बिहारी जी हिंदी व ब्रज भाषा के कवि भी थे। अटल जी को काव्यगुण घर पर हीं प्राप्त हुए। अटल जी ने अपने B.A. की शिक्षा ग्वालियर के लक्ष्मीबाई कालेज से ग्रहण की।1 छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते रहे। अपनी M.A. की शिक्षा आपने प्रथम श्रेणी में कानपूर के डीएवी कालेज से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने उचित विचार कर अपना जीवन संघ के कार्य को समर्पित किया। वह पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक रहे।2
राजनीतिक जीवन
अटलजी पांच दशकों तक सांसद रहे। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने वाजपेयी का उल्लेख “हमारे समय के सबसे उत्कृष्ट सांसद” के रूप में किया है।3 वह प्रथम बार 1957 में बलरामपुर से जनसंघ के प्रत्याशी बन कर लोकसभा में पहुंचे। अगले बीस वर्ष तक वह जन संघ के सदस्य रहे, जिसके पश्चात जनता पार्टी की स्थापना हुई। सन 1975 में जब भारत में इंदिरा जी ने देश में आपातकाल लगाई तब भी उन्होंने जेल की सलाखों को स्वीकार किया। पर इंदिरा जी के सामने झुके नहीं। मोरारजी देसाई जी की सरकार में वह 1977 से 1979 तक भारत के विदेश मंत्री रहे। 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई और वाजपेयी जी को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गयी। 1997 और फिर 1998 में आप भारत के प्रधान मंत्री चुने गए। आपके के नेतृत्व में भारत ने अपूर्व आर्थिक उन्नति की।
सदन में एक बार उन्हें विरोधियों ने कह दिया कि अटल जी सत्ता के लोभी हैं, उस पर अटल जी ने संसद में कहा कि “लोभ से उपजी सत्ता को मैं चिमटी से भी छूना पसंद नहीं करूंगा”। रामजन्म भूमि के आंदोलन में जब ढांचा गिरा तो वे व्यथित हुये, पर संसद में उन्होंने कहा कि, “मैं ढांचा गिराने का पक्षधर नहीं हूं। लेकिन प्रधानमंत्री नंरसिंह राव जी आप देश को यह तो बताइये कि यह परिस्थिति पैदा क्यों हुई। कारसेवकों का धैर्य क्यों टूटा”?4
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